ये कैसी तलब है, क्या एहसास है
जो दूर होकर भी तू मेरे पास है
अंधेरो में भी रौशनी का प्रकाश है
बंद कमरों में फिज़ा भी तो बेहिसाब है
हर वक़्त तेरे होने का एहसास है
तू नहीं तो बेजान ये नमाज़ है
तू है तो सपनों में रंग हैं
ये मेरी दुनिया ही फिरदौस है
तू हस दे तो मन खिल जाये
मेरी रूह मेरी जान
तुझसे ही मेरा आत्मविश्वास है
तेरे हाथों में जब मेरा हाथ है
जिंदगी की हर ख़ुशी पास है
तेरी बाहों में जब मैं खो जाती हूँ
मेरी तसल्ली का वही तो आग़ाज़ है
तुझसे मैं, तुझसे ही रूह
तुझमें मैं , तुझसे ही हर आरज़ू
तुझसे दिन रात, तुझसे सुकून
तुझसे धड़के मेरा दिल
और तेरे होने से ही तो मैं हूँ ...